दया, करुणा और परोपकार का नायाब समन्वय है दिग्विजय सिंह

"सब काम छोड़कर मेरी तत्काल उड़ीसा के मुख्यमंत्री और क्योंझर जिले के कलेक्टर और एस.पी. से बात कराइये।" अपने निजी स्टॉफ को जल्दबाजी में यह निर्देश देते हुए उनके सदैव शांत रहने वाले चेहरे पर आज व्याकुलता के भाव साफ दिखाई दे रहे थे। मैं समझने की कोशिश ही कर रहा था कि आखिर हुआ क्या है? लेकिन तभी उन्होंने घबराए हुए रघुनंदन की पीठ पर हाथ रखा और उसे अपने स्पर्श से शांत करने की कोशिश की। रघुनंदन लोधी गुना जिले की मकसूदनगढ़ तहसील के ग्राम गारखेड़ा का निवासी है। यहीं के यात्रियों से भरी गाड़ी उड़ीसा के क्योंझर जिले में दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। वे उसे दिलासा दे रहे थे "सब ठीक हो जाएगा। तुम्हारी सारी व्यवस्था मैं करूँगा। मृतकों की देह को परिवार तक जल्दी पंहुचाएँगे और घायलों का इलाज भी कराएंगे।"


जैसे ही उनकी यह बात सुनी तो मैं समझ गया कि उड़ीसा में मध्यप्रदेश के राजगढ़ और गुना जिले के लोगों के साथ एक भयंकर सड़क हादसा हुआ है जिसमे 2 लोगों की मौत हो गई और 11 घायल है।


मैंने बिना विलम्ब किये कंप्यूटर से तत्काल उड़ीसा के मुख्यमंत्री और क्योंझर जिले के कलेक्टर और एस. पी. के नंबर निकालकर टेलीफोन पर ड्यूटी कर रहे अपने साथी को उनसे बात कराने के लिए दिए। उनके बात करने के एक घंटे से भी कम समय मे उड़ीसा की सरकार ने दुर्घटना के शिकार मध्यप्रदेश के इन लोगों की मदद के लिए प्रशासन के अधिकारियों को वहां भेजा। घायलों को अच्छे अस्पताल तक पंहुचाया और उनकी मदद की।


मध्यप्रदेश के राजगढ़ और गुना जिले के एक गाड़ी में सवार 13 यात्रियों में 8 पुरुष, 3 महिलाएं और 2 बच्चे थे जो तीर्थ यात्रा पर गए थे।  दो लोगों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। मृतकों के शरीर को उडीसा से मध्यप्रदेश लाना और घायलों की वापसी और उपचार एक बहुत  बड़ी चुनौती थी। उड़ीसा के मुख्यमंत्री श्री नवीन पटनायक और अधिकारियों से बात करने के बाद वे बंगले पर रोज की तरह मौजूद सैंकड़ो लोगों से मिले। शाम हो गई। आज ही उन्हें भोपाल से दिल्ली जाना था। घर से एयरपोर्ट के बीच मैं उनके साथ गाडी में था।


एयरपोर्ट पंहुचते ही उन्होंने मुझसे रघुनंदन लोधी से बात कराने को कहा। वे रघुनंदन से कह रहे थे -- "तुम चिंता मत करो। सारा इंतजाम हो गया है। उड़ीसा की सरकार ने मृतकों और घायलों को उनके घर पंहुचाने का इंतजाम कर दिया है। किसी को भी एक रुपया खर्च करने की जरूरत नही।"


यद्यपि दुर्घटना में मृत 49 वर्षीय शम्भू सिंह और 53 वर्षीय महेश प्रसाद की जान तो वापस नही लायी जा सकती लेकिन जिस तत्परता से श्री दिग्विजय सिंह ने पीड़ित परिवारों के आंसू पौंछे है वह मानवीय करुणा का बेमिसाल उदाहरण है। दूर राज्य में दुर्घटनाग्रस्त 11 घायलों को तत्काल मदद उपलब्ध कराना और उन्हें उपचार के बाद मध्यप्रदेश में अपने घरों तक पंहुचाना किसी देवदूत के कार्य से कम नही है। मानवता की रक्षा के लिए संवेदनशील दिग्विजय सिंह की इन संवेदनाओं को वैसे तो हर कोई जानता है लेकिन इन संवेदनाओ के पीछे उनके विराट व्यक्तित्व को कोई सौभाग्यशाली ही निकट से महसूस कर सकता है। मैं उन्ही सौभाग्यशाली लोगों में से एक हूँ।
27 सितंबर को ऑफिस के लैंड लाइन नंबर एक फोन आया। टूटी फूटी हिंदी में एक व्यक्ति मुझसे इस दुर्घटना में घायलों का हाल पूछ रहा था। वह और कोई नही बल्कि उड़ीसा के मुख्यमंत्री सचिवालय का कोई अधिकारी था। फोन रखने से पहले उसने कहा, प्लीज कन्वे माय रिगार्डस टू दिग्विजय सिंह जी।


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