ग़ज़ल,

 

छुपा कर दर्द मुस्कान लिये फिरते हैं ।

दिल बेचने को दुकान लिये फिरते हैं ।।

 

झांकती है और मुस्करा कर चल देती है ।

हम देखने को हथेली पे लिये जान फिरते हैं ।।

 

मर जांएगे तो ढूंढनी पड़ेगी ज़गह ।

दफनाने को पूरा कव्रिस्तान  लिये फिरते हैं ।

 

भेज दिया मां वाप को आश्रम मे तब से ।

वो खुद की झूठी शान लिये फिरते हैं ।

 

भूले से दिख जाये अक्स  मय मे दीक्षित ।

हाथ मे दर व दर ज़ाम लिये फिरते हैं ।।

 

 ,सुदेश दीक्षित, बैजनाथ कांगड़ा-हिप्र ।

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