छुपा कर दर्द मुस्कान लिये फिरते हैं ।
दिल बेचने को दुकान लिये फिरते हैं ।।
झांकती है और मुस्करा कर चल देती है ।
हम देखने को हथेली पे लिये जान फिरते हैं ।।
मर जांएगे तो ढूंढनी पड़ेगी ज़गह ।
दफनाने को पूरा कव्रिस्तान लिये फिरते हैं ।
भेज दिया मां वाप को आश्रम मे तब से ।
वो खुद की झूठी शान लिये फिरते हैं ।
भूले से दिख जाये अक्स मय मे दीक्षित ।
हाथ मे दर व दर ज़ाम लिये फिरते हैं ।।
,सुदेश दीक्षित, बैजनाथ कांगड़ा-हिप्र ।
Post a Comment