भगवान परशुराम जयंती (प्रकटोत्सव)
g-गंगा का पृथ्वी पर आगमन s सतयुग t त्रेतायुग का आरंभ
शंख-नीचभंग-पर्वत-अमला-रूचक-शश-राज-योगों का महासंयोग
भोपाल। भोपाल मां चामुण्डा दरबार के पुजारी गुरु पंडित रामजीवन दुबे एवं ज्योतिषाचार्य श्री विनोद रावत ने बताया कि वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया रविवार 26 अप्रैल को रोहिणी नक्षत्र में भगवान परशुराम जयंती अक्षय तृतीया के रूप में मनाई जावेगी। आज के दिन गंगा का पृथ्वी पर आगमन हुआ था। सतयुग एवं त्रेतायुग का शुभारंभ रहा था। शंख-नीचभंग-पर्वत-अमला-रूचक-शश-राज-योगों का महासंयोग बन रहा है। अक्षय तृतीय अबूझ मुहूर्त में जीवन में पहली एवं आखिरी बार लॉकडाउन होने से लाखों शादियों पर पूर्णतया प्रतिबंध है। इस कारण अरबों का व्यापार में नुकसान रहा। कोरोना वायरस को-कोई, रो-रोड पर, ना-ना दिखे। लॉकडाउन 3 मई के बाद बढ़ा तो त्र-गदर स्-शांति भंग ञ्ज-तबाही की संभावना है। डिप्रेशन के बीमारों की सं या बढ़ेगी। ागवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का प्रकोटोत्सव जयंती के साथ शुभमांगलिक कार्य का अबूझ मुहूर्त शादियों का माना है। पूजा का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त 5.48 से 12.19 तक है। श्री भगवान विष्णु एवं महालक्ष्मी की पूजा करके मनोकामनापूर्ण का वरदान प्राप्त करे। 11 दीपक लगाकर पूजा-पाठ-हवन-आरती-प्रसाद वितरण करे। अक्षय तृतीया का लाभ लेवे। अक्षय अर्थात जिसका कभी क्षय (अंत) न हो। मंदिरों में पूजा एवं चलसमारोह, सामूहिक विवाह पर पूर्णतया प्रतिबंध लगा है।
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, जानवर की जगह पिंजरे में बंद है इंसान।
सृष्टि की रचना 1955885120 वर्ष पूर्व हुई थी। सतयुग की आयु 17,28000 वर्ष रही, त्रेतायुग की आयु 12,96000 वर्ष रही। द्वापरयुग की आयु 8,64000 वर्ष तक रही। कलयुग की आयु 4,32000 वर्ष है जिसमें 5,121 वर्ष गतानि रहे।
पूजा विधि : अक्षय तृतीया के दिन महिलाएं गाय के गोबर से लीप कर आटे का चौक बनाती हैं। नए मिट्टी के कलश को पानी से भरकर ऊपर फल, तरबूज, खरबूज, आम आदि फल रखती है। दीपक एवं अगरबत्ती लगाकर हवन किया जाता है। भगवान परशुराम को भोग लगाकर आरती की जाती हैं। हर घर में पूजा होती हैं। अक्षय का अर्थ जो कभी क्षय न हो।
महत्व : अक्षय तृतीया के दिन शाहजहांपुर में पैदा हुये परशुराम ने अपने पिता के कहने पर अपनी मां का सिर काट दिया था। परशुराम जमदग्नि और रेणुका की संतान थे। इतिहास के पन्ने पलटें तो पता चला कि एक बार उनके पिता ने मां का सिर काट देने की आज्ञा दी। पिता की आज्ञा को मानते हुये उन्होंने पलक झपकते ही मां रेणुका का सिर धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद ऋषि जमदग्नि ने परशुराम से कहा कि वरदान मांगों इस पर उन्होंने कहा कि यदि वरदान ही देना है तो मेरी मां को पुन: जीवित कर दों इस पर पिता जमदग्नि ने रेणुका को दोबारा जीवित कर दिया। जीवित होने के बाद रेणुका ने कहा कि परशुराम तुमने मां के दूध का कर्ज अदा कर दिया। इस प्रकार पूरे विश्व में परशुराम ही ऐसे व्यक्ति हैं जो मां और बाप दोनों के ऋण से उऋणि हुये। परशुराम के गुरू भगवान शिव थे। उनसे उन्हें आर्शीवाद स्वरूप फरसा मिला था। महर्षि जमदग्नि ऋषि जमैथा स्थित अपने आश्रम पर तपस्या करते थे। आसुरी प्रवृत्ति का राजा कीर्तिवीर उन्हें परेशान करता था। जमदग्नि ऋषि
तमसा नदी के किनारे बसे आजमगढ़ गये जहां भृगु ऋषि रहते थे। भगवान परशुराम जी के शिष्य भीष्म पितामाह, द्रोणाचार्य, दानवीर सूर्यपुत्र कर्ण की भूमिका महाभारत में श्रेष्ठ रही थी।
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