शाह के सामने नतमस्तक महादजी कि वंशज




 

महादजी सिंधिया एक जमाने में पेशवाओं के सबसे बड़े लड़ाका थे।उन्होंने अपने दुश्मनों के खिलाफ कभी घुटने नहीं टेके,शान से लड़ाइयां लड़ीं और जीतीं लेकिन अब उनके खानदान के मौजूदा उत्तराधिकारी न सिर्फ लड़ना भूल गए हैं बल्कि उन्होंने घुटने टेकना तक सीख लिया है।वे ऐसे लोगों की श्रीमंती करने लगे हैं जो किसी भी रूप में सिंधिया की विरासत के आगे नहीं टिकते।इतिहासकार कीनी के अनुसार महादजी सिंधिया 18वीं सदी में भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे महानतम सेनापति था और महानतम सरदार जी उन्हीं के दम पर मराठा साम्राज्य पानीपत की तीसरी लड़ाई के बाद मराठा साम्राज्य का पुनरुत्थान कर सका उनके सहयोग के बिना मराठा साम्राज्य के पुनरुत्थान संभव ही नहीं था।

पिछले दिनों ग्वालियर में सिंधिया के जयविलास पैलेस में आम जनता ने ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनकी बुआ यशोधरा राजे सिंधिया को अपने -अपने बच्चों के साथ केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के सामने हाथ बांधे खड़े देखा।ग्वालियर में हवाई अड्डे विस्तार की योजना का शिलान्यास करने आये शाह के स्तुतिगान में सिंधिया लगभग चीखते हुए देखे गए।उत्तेजना में उन्होंने शाह को आधुनिक लौह पुरुष तक कह दिया।सिंधिया, शाह को आग्रह पूर्वक अपने महल भी ले गए और उनका पलक पांवड़े बिछाकर रेड कार्पेट स्वागत भी किया।  तुरही बजी,महाराष्ट्र के बैंड बाजों ने केसरिया ध्वज के साथ शाह का स्वागत किया गया।.

दरअसल कुछ साल पहले काँग्रेस छोड़ आये,ज्योतिरादित्य सिंधिया आज भी भाजपा में अपने आपको असुरक्षित समझ रहे हैं।हालाँकि भाजपा में उनके अनेक गॉडफादर हैं किन्तु वे शाह से आतंकित नजर आते हैं।उन्हें हमेंशा ईडी का भय सताता रहता है।अपने बेटे के राजनीति में प्रवेश का संकट भी उनके सामने हैं।भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता दो साल बाद भी सिंधिया को अपना नेता मानने को राजी नहीं हैं,ऐसे में उनकी विवशता है कि वे केंद्र में मोदी-शाह की जोड़ी की छत्रछाया में खड़े रहें।

राजनीति में सिंधिया खानदान की ये चौथी पीढ़ी है,किन्तु राजमाता विजयाराजे ने जिस शान से अपनी पारी पूरी की,वो बेमिसाल है।वे आपने समय के मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र से टकरायीं,प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से टकरायीं लेकिन उन्होंने किसी को अपने महल में बुलाकर पलक पांवड़े नहीं बिछाये,वे आपातकाल में जेल गयीं लेकिन झुकी नहीं।

राजमाता के पूत माधवराव सिंधिया ने राजनीति में आने से पहले अपनी माँ की तरह विपक्ष से शुरुआत की लेकिन जब काँग्रेस में आये तो काँग्रेस से कभी विद्रोह नहीं कर सके,उन्हें काँग्रेस ने ही निकाला लेकिन जैसे ही मौक़ा मिला वे वापस काँग्रेस में लौट गए।उनके जमाने में भी सोनिया गाँधी महल में आयीं लेकिन उनके सामने भी माधवराव सिंधिया मित्रवत खड़े नजर आये थे,हाथ बांधे खड़े कभी नहीं हुए।

अपने पिता के आकस्मिक निधन के बाद काँग्रेस से अपना राजनीतिक सफर पूरा करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया दो दशक तो काँग्रेस में आनंद पाने के बाद अंत में पार्टी के आंतरिक   दबाबों को झेल नहीं पाए और ढाई साल पहले अपने फ़ौज-फांटे के साथ भाजपा में शामिल हो गए।भाजपा ने हारे हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्य सभा की सदस्य्ता और केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह देकर उनके छत्र-चंवर वापस तो कर दिए लेकिन वे आज भी भाजपा में अपने आपको स्थापित नहीं कर पाए हैं,उन्हें कभी संघ के दफ्तर में आम कार्यकर्ता बनना पड़ता है,तो कभी भाजपा के दफ्तर में।

ज्योतिरादित्य सिंधिया आज भी मध्यप्रदेश भाजपा के सर्वमान्य नेता नहीं बन पाए हैं।  उनके सामने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर हैं,कैलाश विजयवर्गीय हैं,नरोत्तम मिश्रा हैं ,मुख्यमंत्री शिवराज सिंह तो हैं ही।ये सब मिलकर सिंधिया के लिए कदम-कदम पर कांटे बोते आ रहे हैं,यहाँ तक की भाजपा में सिंधिया की पसंद का न जिलाध्यक्ष है और न पिछले दिनों उनकी पसंद को महापौर चुनाव में तवज्जो दी गयी।हारकर अब वे अमित शाह की शरण में गए हैं,शाह के स्वागत में मध्य्प्रदेश में अब तक का सबसे बड़ा 'शो' सिंधिया ने ही किया है अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में शाह सिंधिया के लिए कितने उपयोगी साबित होते हैं।याद रहे कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की ससुराल गुजरात में है और वे इस समय राजनीति पर हावी गुजरात लॉबी से जुड़कर ही अपना बेड़ा पार करने की जुगत में लगे हैं।

शाह भी शायद सिंधिया का वैभव अपनी आँखों से देखकर विस्मित हुए हों।मुमकिन है कि वे महल का नमक चखकर खुश हो जाएँ और ये भी मुमकिन है कि उनके मन में ईर्ष्या भाव भी पैदा हो जाये,आने वाले दिनों में गुजरात और हिमाचल के चुनाव में सिंधिया का कितना और कैसा इस्तेमाल होगा,इससे भी भविष्य के संकेत मिल सकते हैं।उन्हें अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान की जगह नेतृत्व सौंपा जाएगा या नहीं ये भी शाह की कृपा पर निर्भर है।

 

लेखक राकेश अचल (फोटो rakesh_achal)

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