श्री कुलस्ते ने कहा कि भारत में इस्पात की खपत में वृद्धि की बहुत संभावनाएं हैं क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति इस्पात की खपत केवल 21 किलोग्राम प्रति व्यक्ति है जो राष्ट्रीय औसत 77 किलोग्राम प्रति व्यक्ति का लगभग एक तिहाई ही है।

 


मंत्री महोदय ने कहा कि इस्पात मंत्रालय ने देश में पूंजीगत सामान क्षेत्र के विकास को गति देने के लिए सभी हितधारकों को एक मंच पर लाने के लिए समय-समय पर पहल की है। उन्होंने कहा कि उपभोक्ताओं को सस्ती कीमत पर इस्पात उपलब्ध कराने और निर्यात केंद्र बनने के लिए भारत को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए एक संपन्न पूंजीगत सामान उद्योग की आवश्यकता है। श्री कुलस्ते ने कहा कि पूंजीगत वस्तुओं पर निर्भरता की इस रणनीति का महत्वपूर्ण तत्व पूंजीगत वस्तुओं के अनुसंधान, विकास और उत्पादन पर काम करने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करना होगा।

श्री कुलस्ते ने उल्लेख किया कि कार्बन उत्सर्जन को शून्य स्तर तक कम करने के लिए वैश्विक चिंताओं को ध्यान में रखते हुए इस्पात क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन ने एक बड़ी तात्कालिकता को स्वीकार कर लिया है। भारत उत्पादित कच्चे इस्पात के प्रति टन औसतन 2.55 टन कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन करता है, जबकि उत्पादित कच्चे इस्पात के प्रति टन वैश्विक औसत कार्बन उत्सर्जन 1.8 टन है। इस बात पर बहुत चर्चा हुई है कि इस्पात उत्पादन में हरित हाइड्रोजन का उपयोग इस क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन के उद्देश्य की दिशा में अत्यधिक सहायक होगा। इस्पात उत्पादन में विश्व स्तर पर अपनी बढ़त बनाए रखने के लिए भारतीय इस्पात उद्योग को एक अनुकूलित समाधान के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता है। मंत्री महोदय ने सौर ऊर्जा का उपयोग कर इस्पात उत्पादन के लिए इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस का संचालन शुरू करने के लिए सरलोहा, कल्याणी समूह की सराहना की, जिसमें जीवाश्म ईंधन का उपयोग नहीं किया जा रहा है।

मंत्री महोदय ने उद्योग जगत को सलाह दी कि वे सरकार के विचारार्थ दिन भर के विचार-विमर्श से कार्यान्वयन योग्य सुझावों के साथ आगे आएं।

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