यह पुस्तक प्रजा-तंत्र, जन-तंत्र और लोक-तंत्र के बीच अंतर को रेखांकित करती है। इस पुस्तक में युगों-युगों से भारत में प्रचलित लोकतांत्रिक संस्थाओं के असंख्य उद्धरण हैं। यह प्रमाणित करता है कि भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था सदियों से विकसित हुई है। साथ ही, यह पुस्तक वैश्विक शिक्षा जगत का ध्यान इस ओर आकर्षित करने का एक प्रयास है कि कानून के लिए वैदिक शब्द धर्मन है।इस पुस्तक में भारत की उन लोकतांत्रिक परंपराओं के बारे में चर्चा की गई है जिसने न सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप की नियति को बदल दिया बल्कि दुनिया भर के कई देशों को भी प्रेरित किया। भारत के राष्ट्रीय मूल्यों और हमारी प्राचीन संस्कृति में लोकतंत्र की गहरी जड़ें हैं, जो अलग और यहां तक कि असहमति के दृष्टिकोण के प्रति भी सम्मान सिखाती हैं।
यह पुस्तक प्रजा-तंत्र, जन-तंत्र और लोक-तंत्र के बीच अंतर को रेखांकित करती है। इस पुस्तक में युगों-युगों से भारत में प्रचलित लोकतांत्रिक संस्थाओं के असंख्य उद्धरण हैं। यह प्रमाणित करता है कि भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था सदियों से विकसित हुई है। साथ ही, यह पुस्तक वैश्विक शिक्षा जगत का ध्यान इस ओर आकर्षित करने का एक प्रयास है कि कानून के लिए वैदिक शब्द धर्मन है।इस पुस्तक में भारत की उन लोकतांत्रिक परंपराओं के बारे में चर्चा की गई है जिसने न सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप की नियति को बदल दिया बल्कि दुनिया भर के कई देशों को भी प्रेरित किया। भारत के राष्ट्रीय मूल्यों और हमारी प्राचीन संस्कृति में लोकतंत्र की गहरी जड़ें हैं, जो अलग और यहां तक कि असहमति के दृष्टिकोण के प्रति भी सम्मान सिखाती हैं।
यह पुस्तक प्रजा-तंत्र, जन-तंत्र और लोक-तंत्र के बीच अंतर को रेखांकित करती है। इस पुस्तक में युगों-युगों से भारत में प्रचलित लोकतांत्रिक संस्थाओं के असंख्य उद्धरण हैं। यह प्रमाणित करता है कि भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था सदियों से विकसित हुई है। साथ ही, यह पुस्तक वैश्विक शिक्षा जगत का ध्यान इस ओर आकर्षित करने का एक प्रयास है कि कानून के लिए वैदिक शब्द धर्मन है।इस पुस्तक में भारत की उन लोकतांत्रिक परंपराओं के बारे में चर्चा की गई है जिसने न सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप की नियति को बदल दिया बल्कि दुनिया भर के कई देशों को भी प्रेरित किया। भारत के राष्ट्रीय मूल्यों और हमारी प्राचीन संस्कृति में लोकतंत्र की गहरी जड़ें हैं, जो अलग और यहां तक कि असहमति के दृष्टिकोण के प्रति भी सम्मान सिखाती हैं।
यह पुस्तक प्रजा-तंत्र, जन-तंत्र और लोक-तंत्र के बीच अंतर को रेखांकित करती है। इस पुस्तक में युगों-युगों से भारत में प्रचलित लोकतांत्रिक संस्थाओं के असंख्य उद्धरण हैं। यह प्रमाणित करता है कि भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था सदियों से विकसित हुई है। साथ ही, यह पुस्तक वैश्विक शिक्षा जगत का ध्यान इस ओर आकर्षित करने का एक प्रयास है कि कानून के लिए वैदिक शब्द धर्मन है।इस पुस्तक में भारत की उन लोकतांत्रिक परंपराओं के बारे में चर्चा की गई है जिसने न सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप की नियति को बदल दिया बल्कि दुनिया भर के कई देशों को भी प्रेरित किया। भारत के राष्ट्रीय मूल्यों और हमारी प्राचीन संस्कृति में लोकतंत्र की गहरी जड़ें हैं, जो अलग और यहां तक कि असहमति के दृष्टिकोण के प्रति भी सम्मान सिखाती हैं।
यह पुस्तक प्रजा-तंत्र, जन-तंत्र और लोक-तंत्र के बीच अंतर को रेखांकित करती है। इस पुस्तक में युगों-युगों से भारत में प्रचलित लोकतांत्रिक संस्थाओं के असंख्य उद्धरण हैं। यह प्रमाणित करता है कि भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था सदियों से विकसित हुई है। साथ ही, यह पुस्तक वैश्विक शिक्षा जगत का ध्यान इस ओर आकर्षित करने का एक प्रयास है कि कानून के लिए वैदिक शब्द धर्मन है।
Post a Comment