कलेक्टर ने किया चीचली विकासखंड के विभिन्न ग्रामों का भ्रमण कर दिए आवश्यक निर्देश

 





कलेक्टर सुश्री ऋजु बाफना ने बुधवार को चीचली विकासखंड के ग्रामों और नगर परिषद चीचली का भ्रमण किया। इस दौरान उन्होंने धान उपार्जन केन्द्रों,जनजातीय कार्य विभाग के छात्रावासों,स्कूल,आँगनबाड़ी केन्द्र, निर्माणाधीन गौशाला,प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र का निरीक्षण किया और आवश्यक निर्देश दिये।उन्होंने खेत तालाब में मछली पालन के कार्य को भी देखा।

धान उपार्जन केन्द्र का निरीक्षण

   कलेक्टर ने गुरू कृपा वेयर हाउस बटेसरा में बनाये गये धान उपार्जन केन्द्र का निरीक्षण किया और किसानों से चर्चा की।उन्होंने अपने सामने तौल कांटे में बारदाने की तौल कराई।उन्होंने वजन मशीन/तौल कांटों के सत्यापन,दर्ज किसान, कम्प्यूटर में एंट्री,नमी मापक यंत्र की जानकारी ली।उन्होंने एक किसान की धान का नमूना भी देखा।तौल कांटे का सत्यापन नहीं होने और उपार्जन केन्द्र की व्यवस्थायें सही नहीं पाये जाने पर कलेक्टर ने गहरी नाराजगी जताई।उन्होंने जिला आपूर्ति अधिकारी,नापतौल निरीक्षक और वृहत्ताकार सेवा सहकारी समिति को कारण बताओ नोटिस जारी करने के निर्देश दिये।उन्होंने एसडीएम को निर्देशित किया कि वे धान उपार्जन केन्द्रों की मॉनीटरिंग कर व्यवस्थायें दुरूस्त करायें।

   इसके बाद कलेक्टर ने बटेसरा में आंगनबाड़ी केन्द्र का निरीक्षण किया।उन्होंने पीएचई के अधिकारी को नल- जल व्यवस्था को दुरूस्त कराने और सोख्ता गड्ढा बनवाने के लिए निर्देशित किया।उन्होंने सम्पर्क एप में एंट्री,बच्चों के पोषण आहार के बारे में जानकारी ली और आँगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की ट्रेनिंग कराने के निर्देश दिये।

खेत-तालाब में मछली पालन देखा

   कलेक्टर ने करपगांव में कृषक नितिन कुमार सोनी एवं  धनीराम राजपूत के खेत-तालाब में मछली पालन का कार्य देखा।खेत-तालाब का निर्माण मनरेगा से किया गया है।उन्होंने मछली पालन से होने वाली आय,मछली की प्रजातियों आदि के बारे में जानकारी ली।श्री राजपूत ने बताया कि उन्हें आधा एकड़ के खेत-तालाब में मछली पालन से एक साल में करीब ढाई लाख रुपये की बचत हो जाती है।इसके बाद कलेक्टर ने इमलिया-कल्याणपुर में निर्माणाधीन अमृत सरोवर का कार्य देखा।

ग्राम रायपुर का भ्रमण

   तत्पश्चात कलेक्टर ने रायपुर में आँगनबाड़ी केन्द्र का निरीक्षण किया।यहाँ उन्होंने पीने के पानी,लाईट की समुचित व्यवस्था,सोख्ता गड्ढा बनवाने और पुताई के निर्देश दिये।उन्होंने आँगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए स्वास्थ्य शिविर लगवाने के निर्देश दिये।उन्होंने स्कूल परिसर भी देखा और प्याऊ की जानकारी ली।उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी को सभी प्राथमिक एवं माध्यमिक शालाओं में पीने के पानी की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करने के निर्देश दिये।

   कलेक्टर ने रायपुर के धान उपार्जन केन्द्र का निरीक्षण कर व्यवस्थायें देखी।उन्होंने एसडीएम को निर्देशित किया कि चैक लिस्ट के अनुसार सभी उपार्जन केन्द्रों में आवश्यक व्यवस्थायें की जायें।

 

ग्राम गांगई पहुँची कलेक्टर 

  इसके बाद कलेक्टर ने गांगई में निर्माणाधीन गौशाला का निरीक्षण किया।उन्होंने निर्माण कार्य शीघ्र पूर्ण कराने और पीने के पानी की समुचित व्यवस्था व बिजली कनेक्शन कराने के बारे में निर्देश दिये।

   कलेक्टर सुश्री बाफना ने यहां उज्जवल ग्राम संगठन की महिलाओं से बात की।इस संगठन में 32 स्व सहायता समूह की करीब 350 महिलायें शामिल हैं।स्वसहायता समूह की महिलाओं द्वारा एनटीपीसी से निकलने वाली डस्ट/फ्लाई ऐश से ईंट एवं पेवर ब्लाक का निर्माण किया जायेगा।

शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय चीचली का निरीक्षण

   कलेक्टर ने शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय चीचली में आईटी लैब एवं इलेक्ट्रिकल लैब का निरीक्षण किया और विद्यार्थियों से बात की।उन्होंने लैब में किये जाने वाले प्रयोग और भविष्य में क्या बनोगे,इसके बारे में विद्यार्थियों से पूछा। उन्होंने बोर्ड परीक्षा के परिणाम की जानकारी ली।कलेक्टर ने जिला शिक्षा अधिकारी को निर्देशित किया कि सभी हाई स्कूल एवं हायर सेकेंडरी स्कूल में लैब व्यवस्थित रहें।

चीचली में छात्रावासों का निरीक्षण

   कलेक्टर ने चीचली में जनजातीय कार्य विभाग के अंतर्गत सीनियर बालक उत्कृष्ट संस्थान छात्रावास का निरीक्षण किया।उन्होंने निर्देशित किया कि छात्रावासों की सभी सीटें भरी रहें।कलेक्टर ने छात्रावास में मरम्मत कार्य,शयन कक्ष,टायलेट्स,अध्ययन कक्ष,किचिन आदि का निरीक्षण किया।उन्होंने निर्देशित किया कि छात्रावास में सीपेज नहीं होना चाहिये।गद्दे और तकिए बदले जायें।अलमारी और टायलेट्स दुरूस्त किये जायें।लाईट की समुचित व्यवस्था रहे।आरओ संयंत्र की व्यवस्था की जाये।मरम्मत कार्य शीघ्र पूर्ण करायें।पर्याप्त खेल सामग्री रहे।

   अनुसूचित जाति सीनियर बालक छात्रावास चीचली के निरीक्षण के दौरान कलेक्टर ने निर्देशित किया कि गद्दे, टीवी,आरओ संयंत्र और अन्य सामग्री अच्छी गुणवत्ता की ही क्रय की जायें।इसके पहले सामग्री की गुणवत्ता का सत्यापन सीईओ जिला पंचायत से करायें।उन्होंने जिला संयोजक को निर्देशित किया कि सभी छात्रावासों में लाईट की पर्याप्त व्यवस्था रहे,आवश्यकतानुसार मरम्मत कराई जाये,समुचित साफ-सफाई हो,लायब्रेरी में प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए किताबें रहें।उन्होंने छात्रावास में खेल मैदान तैयार कराने के निर्देश दिये।

प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र चीचली का निरीक्षण

   कलेक्टर ने प्राथमिक स्वास्थ्‍य केन्द्र चीचली का निरीक्षण किया।उन्होंने ओपीडी,पैथोलॉजी कक्ष,दवा वितरण केन्द्र,महिला वार्ड,लेबर रूम,आब्जर्वेशन रूम आदि का मुआयना किया।उन्होंने ब्लॉक स्तर पर आँगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए स्वास्थ्य शिविर लगवाने के लिए सीएमएचओ को निर्देशित किया।उन्होंने प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना की तीसरी किस्त जारी करने के लिए शेष टीकाकरण पूर्ण कराने के लिए निर्देशित किया।कलेक्टर ने टीबी सैम्पलिंग बढ़ाने के निर्देश दिये।

गोटीटोरिया में देखा बाबेर रस्सी निर्माण केन्द्र

   कलेक्टर ने गोटीटोरिया में सतपुड़ा बाबेर रस्सी निर्माण केन्द्र का मुआयना किया।यहाँ बाबेर घास से रस्सी बनाई जाती है।उन्होंने रस्सी बनाने के बारे में जानकारी ली।रस्सी बनाने से होने वाली आय के बारे में पूछा।रस्सी बनाने वाली महिला ने बताया कि बाबेर घास से एक किलो रस्सी बनाने पर 24.45 रुपये मिलते हैं।

   इसके बाद कलेक्टर ने वन परिक्षेत्र गाडरवारा के अंतर्गत मोहपानी से बड़ागांव सड़क निर्माण के संबंध में वन विभाग के अधिकारियों से चर्चा की और स्थल निरीक्षण कर आवश्यक निर्देश दिये। ***************************************************************************

संपादकीय 

शक्कर नदी पर पहले भी हुआ था,बांध बनाने के लिए सर्वे-भूजल स्तर गिराकर बांध की स्वीकृति

 

 

लेखक -कुशलेन्द्र श्रीवास्तव (वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार) (फोटो Shirvastavji )

(फोटो आर्टिकल -River)

 

नर्मदा की सहायक नदी शक्कर नदी पर बांध बनाए जाने के प्रस्ताव को स्वीकृति मिल गई है शक्क्रर नदी करेली तहसील के हथनापुर से निकलती है और गाडरवारा क्षेत्र से होती हुई वह नर्मदा नदी में मिल जाती है।हथनापुर से करीब पाँच किलोमीटर अंदर पहाड़ी क्षेत्र में शक्कर नदी का उदगम माना जाता है,जो जंगलों से गुजरते हुए सीतारेवा नदी से मिलन करते हुए नर्मदा नदी में जाकर मिल जाती है।चूंकि यह बहुत लम्बी यात्रा नहीं करती इस कारण से ही शक्कर नदी को क्षेत्रीय नदी के नाम से भी पहचाना जाता है और इसका नाम भी क्षेत्रीयता को समेटे हुए प्रतीत होता है।गाडरवारा की पहचान शक्कर नदी से है और कभी इसके तट पर ही बैठकर विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक ओशे ने अपना आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया था।नर्मदा परिक्रमा कर उसके सौन्दर्य को समेट कर किताब लिखने वाले स्व अमृतलाल जी न बागड़ी ने भी शक्कर नदी की परिक्रमा कर इसे चित्रित करने की योजना बनाई थी जो पूरी नहीं हो सकी।शक्कर नदी के रेतीले किनारों पर होने वाली एक बेहद अलग किस्म की ककड़ी,जिसे शक्कर ककड़़ी कहा जाता है इस नदी की ही उपज है, इसके अतिरिक्त यह और कहीं नहीं पैदा होती।इस नदी के किनारे उत्पादित होने वाले तरबूज और खरबूज कभी इतने स्वादिष्ट हुआ करते थे कि उनकी मांग प्रदेश के बाहर भी हुआ करती थी।समय के साथ शक्कर नदी का जल सूखता चला गया और इसके जल से जीवन लेने वाले उत्पाद भी सिमटते चले गए ।

शेर प्रोजेक्ट-शक्कर नदी पर बांध बनाने के लिए पहले भी योजना बनी थी।इस परियोजना को ‘शेर प्रोजेक्ट’ लाम दिया गया था।यह वह समय था जब शक्कर नदी में भरपूर पानी हुआ करता था।गाडरवारा स्थित छिड़ाव घाट और रामघाट में दो-तीन पुरूष पानी हुआ करता था और इस नदी के किनारे बसने वाली आबादी वह चाहे शहरी आबादी हो अथवा ग्रामीण आबादी शक्क्र नदी के जल के भरोसे ही अपना जीवन यापन करते थे।क्षेत्र में सिंचाई के और जल के अन्य साधन नहीं थे।सरकारी नलकूप थे जिनकी संख्या एक दर्जन के करीब थी जो बाद में बढ़कर 36 हो गए थे।कम नलकूप होने के कारण ही किसानों को सिंचाई के लिए सिंचाई विभाग में नम्बर लगाना पड़ता था,इसके कारण उनकी फसल बर्बाद भी हो जाया करती थी क्योंकि कई बार नम्बर इतने विलंब से आता था कि फसल को समय पर सिंचित नहीं किया जा पाता था।सिंचाई की इयर आवश्कता को ध्यान में रखकर शक्क्र नदी पर बांध बनाने की योजना बनाई गई।उस समय तक जबलपुर स्थित नर्मदा नदी में बरगी बांध के प्रस्ताव को मंजूरी मिल चुकी थी।इस बांध से निकलने वाली नहरें नरसिंहपुर जिले की गोटेगांव,नरसिंहपुर और करेली तहसील तक आनी प्रस्तावित थीं,केवल गाडरवारा का क्षेत्र वंचित हो रहा था।शेर प्रोजेक्ट के माध्यम से इस क्षेत्र की इस कमी को पूरा किया जाना था। 

             

 

शेर प्रोजेक्ट मे 85 फीट ऊंचा बांध बनाया जाना था।इस बांध से दो नहरे निकाली जानी थी।साथ ही बांध में एकत्रित होने वाले पानी से बिजली बनाने का प्रस्ताव भी था।उस समय बिजली की कमी से न केवल मध्यप्रदेश वरन पूरा देश ही संघर्ष कर रहा था।वर्ष 1964 के आसपास इस प्रोजेक्ट का सर्वे का काम प्रारंभ हुआ।पाँच इंजीनियर सहित आफिस में काम करने वाला पूरा स्टाफ नियुक्त किया गया जिसका ऑफिस गाडरवारा में बनाया गया।उस समय संसाधन सीमित थे और कार्य बारीक था।इंजीनियरों को जंगल पट्टी में सर्वे का काम करना पड़ा।हथनापुर में बांध बनाया जाकर उससे नहरें निकालनी थी । जंगल घना था आज की तरह जंगल मैदान जैसा दिखाई नहीं देता था।जंगल की ऊंची-नीची पहाड़ियों के बीच उसे रास्ता बनाकर सर्वे का काम किया गया और अंत में एक नक्शा तैयार किया गया इस नक्शे में बांध से प्रभावित होने वाले परिवारों को अन्यत्र बसाने के साथ ही साथ बांध से दो नहरे निकालने की योजना बनाई गई थी।एक नहर गोटिटोरिया के जंगलों से होती हुई बारहाबड़ा,सालीचैका से निकलकर दुधी नदी में मिलाई जानी थी और दूसरी नहर सूखाखैरी से होती हुई,सीरेगांव, कामती,आमगांव छोटा से आगे बढ़ती हुई,सांईखेड़ा के क्षेत्र को सिंचित करते हुए झिकोली घाट स्थित नर्मदा नदी से जाकर मिलनी थी।बांध पर बिजली बनाने का संयत्र भी लगाया जाना था जो इतनी बिजली उत्पादित करता जिससे नरसिंहपुर जिले की बिजली की समस्या का निदान हो जाता क्योंकि इस बांध से उत्पादित होने वाली बिजली को केवल नरसिंहपुर जिले में ही खपत किया जाना प्रस्तावित था।बताया जाता है कि वर्ष 1982 में अंतिम सर्वे रिपोर्ट बना ली गई थी।उस समय इस सारी परियोजना की लागत 14 करोड़ रूपए थी।उस समय निजी नलकूप नहीं थे और शक्कर नदी में पानी पर्याप्त होता था,जिसके कारण भूजल स्तर बहुत अच्छा था।कई क्षेत्रों में पानी जमीन के ऊपर से बहता था।मात्र कुछ 2-4 फीट खोदने पर पानी निकल आता था।कई प्राकृतिक झरने भी निरंतर पानी निकालते रहते थे।उस समय बांध बनने और नहरें निकलने मात्र से ही क्षेत्र को हरा भरा किया जा सकता था साथ ही फसल उत्पादन में वृद्धि की जा सकती थी।इसके कारण ही क्षेत्र में शेर प्रोजेक्ट को लेकर उत्सुकता और उत्साह बना हुआ था।सर्वे टीम ने अपनी अंतिम रिपोर्ट शासन को सौप दी थी और उसकी स्वीकृति का इंतजार किया जाने लगा था।चूंकि जबलपुर की बरगी योजना का काम प्रारंभ हो चुका था और वह गोटेगांव तहसील तक नहरें बनाने की दिशा में आगे बढ़ चुका था, इस कारण से उम्मीद की जा रही थी कि बरगी परियोजना की तरह इस शेर प्रोजेक्ट को भी स्वीकृति मिल ही जायेगी।लम्बे अंतराल के बाद प्रोजेक्ट को निरस्त मान लिया गया।अब नहरें नहीं बन रहीं हैं इससे हताश और निराश किसानों ने निजी नलकूप खुदवाने प्रारंभ कर दिए।90 दके दशक आत-आते क्षेत्र में सैंकड़ों की संख्या में नलकूप खुद गए और उनसे पानी निकलने लगा।तेजी से पानी का दोहन प्रारंभ हुआ तो भूजल स्तर गिरने लगा।भूजल स्तर गिरने का असर शक्कर नदी और उसकी सहायक सीतारेवा नदी पर भी हुआ।नदी का जलस्तर कम हुआ और शनैः-शनैः नदी केवल बरसात के मौसम में ही पानी से भरी दिखाई देने लगी बाद में वह केवल रेतीला मैदान ही नजर आने लगी।नलकूप खान जो कभी 10-20 फीट गहराई तक ही होता था,भूजल स्तर गिरने के कारण अब यह खनन 200 से 250 फीट गहराई तक होने लगा।हैंण्डपंप जो 50-60 फीट की गहराई तक खुदे होते थे वे 100 फीट की गहराई तक पहुँच गए,इनमें भी कइ्र हैंण्डपंप गरमी का मौसम आने पर पानी फेंकना ही बंद कर देते हैं।सरकारी आंकड़े बताते हैं कि क्षेत्र का भूजल स्तर लाल निशान तक सिमट आया है।लाल निशान वह बिन्दु होता है जिसके बाद भूजल स्त्रोत पानी देना बंद कर देते है,इसका मतलब की इसके बाद पानी की समस्या विकराल होने वाली है।बरसात के पानी से भूजल स्तर को थोड़ा बहुत सहयोग मिलता है परंतु अब बरसात की अनियमितत के कारण भूजल स्तर बहुत अधिक नहीं बढ़ पा रहा है।इन तमाम परिस्थितियों के बीच एक बार फिर शक्कर नदी पर बांध बनाये जाने की योजना को मंजूरी मिली है।शक्कर पेंच संयुक्त परियोजना के नाम से स्वीकृत वर्तमान की इस परियोजना में 95.40 मीटर बांध बनाया जाना प्रस्तावित किया गया है । बांध की लम्बाई 384.435 मीटर होगी और इसकी भंडारण क्षमता 445.73 मिलियन क्यूबिक मीटर होगी। 3824.40 करोड़ से बनने वाले इस बांध से 188 गांवों की 6400 हैक्टेयर भूमि की सिंचाई किया जाना प्रस्तावित है।बांध बनने से करीब 867 हैक्टेयर भूमि डूब जायेगी।इस बांध के निर्माण का कार्य अडानी ग्रुप को मिला है।अनुबंध हो जाने के बाद से 72 माह के अंदर इसे बनाना होगा ।

           

                          परियोजना में कितनी नहरें निकलेगीं और वे कहाँ-कहाँ तक जायेगीं,इसका उल्लेख होगा पर अभी इसकी जानकारी नहीं है परंतु इतना अवश्य है कि गिरते भूजल स्तर को यह बांध अवश्य ही जीवनदान देगा।वैसे तो छोटे से लेकर बड़े किसानों ने अपनी निजी सिंचाई व्यवस्था बना ली है,परंतु गिरते भूजल स्तर ने नलकूपों से पानी लेने की सुविधा को प्रभावित किया है।यदि बांध वाकई बन जाता है तो क्षेत्र के लिए यह सौगात ही होगी।वैसे आज इस बात पर चिन्त किया जाना भी आवश्यक है कि यदि इस परियोजना को आज से करीब 40 साल पहले ही स्वीकृति मिल गई होती तो आज क्षेत्र की स्थिति बिल्कुल भिन्न होती।संभवतः क्षेत्र समृद्धि के नये आयाम पर होता।प्रश्न यह भी सामने है कि तब क्यों शक्कर नदी पर बांध बनाने की परियोजना को स्वीकृति नहीं मिली और अब कैसे मिल गई । तब यह परियोजना मात्र 14 करोड़ में पूरी हो जाती और किसानों को सिंचाई के प्र्याप्त साधन मिल जाते तो उसे निजी नलकूप नहीं खोदने पड़ते जिनके कारण ही क्षेत्र में भूजल सतर में गिरावट आई है।बहररहाल इस योजना का स्वागत है ।

0/Post a Comment/Comments