धनपुरी (शहडोल)। अपने संदेश पर युवा पत्रकार और इस्लामी विद्यमान साजिद खान ने बताया कि इस्लाम अरबी शब्द है जिसकी धातु मूल "स- ल- म" है अरबी के व्याकरण के अनुसार विभिन्न निष्पत्ति के अनुसार इस धातु से उत्पन्न होने वाले शब्द 'इस्लाम' एवं तस्लीम है, जबकि इस धातु के अक्षरों से बने एक शब्द "सिल्म" का शाब्दिक अर्थ अमन (शांति) है। फिर सलाम और सलामत के शब्द भी हमारी भाषा में सलामती के अर्थ में प्रयुक्त एवं प्रचलित है। स्वयं 'इस्लाम' शब्द का अर्थ अपने आप को ईश्वर को समर्पित
कर देना, उसके आगे सिर झुकाना, उसकी आज्ञा पालन और भक्ति है इस्लाम का अर्थ हुआ कि ईश्वर के आज्ञा पालन से शांति । इस्लामी दृष्टिकोण से मानव का संसारिक जीवन ईशभक्ति के लिए है और ईश भक्ति विश्व शांति की जमानत है। मुस्लिम समाज में "अस्सलामू अलैकुम" (तुम पर सलामती हो) का रिवाज एक इस्लामी पहचान पर आधारित है और इसमें प्रत्येक व्यक्ति के लिए शांति शुभ सूचना और शुभ संदेश है। इसका अर्थ यह है कि इस्लाम दुनिया में जो समाज बनाना चाहता है वह पूर्ण रुप से रहमत और वरदान है। इसकी लोगों के बीच आपस में एक दूसरे के प्रति सहानुभूति और सहयोग इसकी विशेष पहचान है। इस्लाम की इस विशेषता का संकेत "बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम" ( अल्लाह के नाम से शुरू जो अत्यंत कृपासील और बड़ा ही दयावान है) का प्रसिद्ध वाक्य है जिससे मुस्लिम समाज के लोगों का प्रत्येक काम प्रारंभ होता है और जो कुरान मजीद की तमाम अध्यायों आरंभ बिंदु है। इस वाक्य में ईश्वर की जिन दो विशेषताओं का उल्लेख किया गया है वह रहमत (करुणा दया कृपा) पर आधारित है। इसका भावार्थ यह है की रहम व करम (दया,कृपा) जिस प्रकार ईश्वर की सबसे बड़ी विशेषता है उसी प्रकार उसके बंदो की भी उत्कृष्ट विशेषता है। उनके जीवन मे सभी गतिविधियां और क्रियाकलाप ईश्वरीय कृपा की प्राप्ति के लिए होते हैं और उनका प्रत्येक काम ईश्वर की दया और कृपा की ओर संकेत करता है। रहमों करम की इस भावना से बढ़कर शांति और सुरक्षा की जमानत क्या दुनिया में हो सकती है। *अल्लाह को कुरान में रब्बुल आलमीन यानी सारे आलम (ब्रह्मांड) का पालनहार और हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को रहमतुल लिल अलमीन यानी सारे आलम (जहानो) के लिए दया और कृपा बनाकर भेजे गए हैं यानी जगदयालु है* कहा गया है और *मुसलमान का अर्थ ईश्वर के आज्ञा पालक से शांति वाला होता है*।
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